असित पावस की भीगी रात,
शरद की सिमटी सिकुड़ी रैन,
ग्रीष्म की उबल रही यामिनी,
एक सी सभी
तुम्हारे बिना, ओ मा !
तुमारे गीत मनोहर, तानें मोहक,
स्वर का मृदु कोमल-तर कम्पन,
सिहर रहे मन-प्राण निशि-दिवस
हाय ! स्मरण कर।
तरस रहे नयनों से मोती ढ़ल पड़ते हैं
और भूमि पर गिरकर मानों खो जाते हैं।
ये मोती असहाय
ढ़ले गिरे निरूपाय, दीन से हाय !
कभी था इनका भारी मोल
इन्हें अंचल से पोंछ कर
मॉं ! तुम कहती थीं
सुनो राजा बेटा !
अब हाय ! सुनाये कौन ?
तुम्हारे बिना, ओ मां !
शरद की सिमटी सिकुड़ी रैन,
ग्रीष्म की उबल रही यामिनी,
एक सी सभी
तुम्हारे बिना, ओ मा !
तुमारे गीत मनोहर, तानें मोहक,
स्वर का मृदु कोमल-तर कम्पन,
सिहर रहे मन-प्राण निशि-दिवस
हाय ! स्मरण कर।
तरस रहे नयनों से मोती ढ़ल पड़ते हैं
और भूमि पर गिरकर मानों खो जाते हैं।
ये मोती असहाय
ढ़ले गिरे निरूपाय, दीन से हाय !
कभी था इनका भारी मोल
इन्हें अंचल से पोंछ कर
मॉं ! तुम कहती थीं
सुनो राजा बेटा !
अब हाय ! सुनाये कौन ?
तुम्हारे बिना, ओ मां !
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