अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

रात अंधेरी

बीत गया दिन किसी तरह,
यह रात नहीं कटती है।
मेरे नभ की असित बदरिया
हाय नहीं हटती है।
रोकर-मन कहता है,
उसका सकल कलुष धुल जाये
ऐसे में व्यवधान द्वैत का
आओ. . तो धुल जाये।
तम-असीम में मेरी छोटी
यह सीमा घुल जाये।
दुख दुर्दिन की चढ़ी बदरिया
हाय ! नहीं छटती है।
बीत गया दिन किसी तरह,
शेष नहीं है द्विधा, जाल, भय
अंतर आदिक कोई,
देख न पाया कोई।
जन्म जन्म की आज जगी है
भुक्ष-वासना सोई
जो प्रतिफल वर्धन-शीला है
अरे नहीं घटती है।
क्षुद्र बिंदु से खुद ही आकर
महासिंधु मिलता है।
जग से अग, फिर अल्प प्राण से
महाप्राण मिलता है।
विरहा कुल मन, मिलन तृषित तन
तुम में लय होता है।
कट जात है जीवन लेकिन,
मृत्यु नहीं कटती है।
बीत गया दिन किसी तरह
पर रात नहीं कटती है।

No comments:

Post a Comment