अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

आखिरी गीत

चलूंगा, ठहर जा अभी ही चलूंगा
मगर आखिरी बार, बल भर जलूंगा, तभी तो चलूंगा।
किसी के लिये जिन्दगी शाम है तो,
किसी को उदधि से उठी एक लहर है
किसी को फसाना किसी को स्वपन है।
किसी को सुधा है, किसी को गरल है
कहीं पर नये फूल इतरा रहे हैं।
किसी को बुबह का तराना किसी को,
सरे-शाम की एक भूली बहर है।
फिलसफी थकी घास पर सो रही है
जगाऊॅं, दुलारूँ तभी तो चलूंगा. . . . ठहर जा चलूंगा. . .
बड़े शोख हैं ढ़ीठ कांटे चमन के
ये उलझा तो दामन छुड़ाती फिरेगी
किसी मखमली पांव पर चुभ गये तो,
वो सी-सी करेगी, रूकेगी झुकेगी।
हटा जो सका, चंद कांटे चमन के
तो परियां खुशी से चहकती फिरेंगी
पुराने गगन में, चमन में, हवा में
अदा से नई रागिनी छा सकेगी
उठाना उधर बीन मेरी पड़ी है
जरा आखिरी गीत गाकर चलूंगा. . . ठहर जा चलूंगा. . .

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