अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

भाषण

जीवन पर भाषण बहुत सुने
पर मरण पर न बोला कोई।
मुकुलित सुमनों को प्यार मिला
कब मरने पर रोया कोई।
वह नूरजहां, यह ताजमहल
विधि की रचना की गरिमायें
दोनों का अपना युग बीता
दोनों ही धरती पर सोई।
सदियां बीती इनकी मजार पर
प्रतिदिन मेला भरता है।
कब उसकी मिटती सी मजार पर
फूल चढ़ाता है कोई।
इसकी तुरबत पर इत्र फूल
और शमा सुगंधित जलती है।
पर उस अभागिनी के करीब
दो आंसू भी कोई रोया ?
प्रतिदिन कितनी ही नूर, ताज
लुट जाती हैं, मिट जाती हैं
फुटपाथों पर क्वारी साधें
उठती हैं, मत कुचले कोई ?
तुम भीतर क्या हो खोज रहे
बैठो मैं स्वयं बताता हूँ ।
अनकहे प्रश्न कुछ मचल रहे
अभिलाषायें सोई सोई।
कुछ मौन, प्रश्न के उत्तर हैं
जिनको अब तक न मिली भाषा
मीठी कड़वी कुछ यादें हैं
कवितायें कसक भरी सोई।
बस ये ही सच्चे साथी हैं
संबल स्वरूप कवि जीवन के
बस इतना ही ले जाने के
क्यों इन्हें छीनता है कोई ?

No comments:

Post a Comment