अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

फूल वाली

मैं फूल बेचने आई हूँ , तुम लोगी मोल ?
लोगी मोल. . . ।
अलसित प्रभात के रवि ने, छिपकर कुंजों में देखी
लज्जा से सिमटी सिकुड़ी, अवगुण्ठन वाली कलियॉं
भ्रमरों का कुछ कह जाना, कालिका के सिर का झुकना
मैं देख रही थी छिपी हुई, अपलक नयनों को खोल।
कोई लोगी मोल. . . . ।
उत्सर्ग किया कलिका ने रवि पर, निज जीवन, तन-मन
ठुकरा कर रवि ने झुलसा, उसके जीवन का कण-कण।
यह प्रीति किये का प्रतिफल, मैं देख रही थी अविचल
कुछ सोच रही थी, दुःख से भरे, इस जीवन का क्या मोल ?
कोई लोगी मोल. . . . ।
गालों पर मोती जैसे, कुछ ढुलक पड़े क्यों कैसे ?
इन बूँदों का क्या होगा, कोई सस्ता क्यों देगा ?
आंसू का मोल न लूंगी, ले लो यूँ  ही दे दूँ गी
लो जाती हूँ , अब सांझ हुई, ऑंचल भर लो अनमोल
कोई लोगी मोल. . . . ।

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