जीवन भर जीना ही होगा
यह भार वहन करना होगा।
जिसके इंगित पर पवन सोम
रवि आदि यंत्र चालित समान,
युग-युग से अवनी के तट पर
चल रहे खो दिया मोह मान।
मेरे कवि को गाना होगा। जीवन भर. . . .
कवि का अथ है पीड़ा सरगम
बढ़ता जाता मृदु मध्य तार।
जिसमें अवरोह नहीं होता
झंकृत कर देता तार-तार।
पीड़ा को स्वर, स्वर को जीवन
जीवन गति-मय करना होगा। जीवन भर. . .
कुछ दिन थे कवि के गीत मौन
जग ने समझा कवि हुआ सुप्त।
फिर लगी ठेस, वह चले गीत
वह प्रगट हुआ जो था कि गुप्त।
आकुल प्राणों से उठे गीत
उन गीतों को लिखना होगा
आंसू से भीगे गीतों को
कोमल-तर स्वर देना होगा।
जीवन भर जीना ही होगा. . . . .
यह भार वहन करना होगा।
जिसके इंगित पर पवन सोम
रवि आदि यंत्र चालित समान,
युग-युग से अवनी के तट पर
चल रहे खो दिया मोह मान।
मेरे कवि को गाना होगा। जीवन भर. . . .
कवि का अथ है पीड़ा सरगम
बढ़ता जाता मृदु मध्य तार।
जिसमें अवरोह नहीं होता
झंकृत कर देता तार-तार।
पीड़ा को स्वर, स्वर को जीवन
जीवन गति-मय करना होगा। जीवन भर. . .
कुछ दिन थे कवि के गीत मौन
जग ने समझा कवि हुआ सुप्त।
फिर लगी ठेस, वह चले गीत
वह प्रगट हुआ जो था कि गुप्त।
आकुल प्राणों से उठे गीत
उन गीतों को लिखना होगा
आंसू से भीगे गीतों को
कोमल-तर स्वर देना होगा।
जीवन भर जीना ही होगा. . . . .
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