अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

उपहार

मेरी वीण का तार
तार पर चढ़ा
उसी दम टूट गया।
अब आह बीन की गूंज रही
अग-जग जल जाना चाह रहा।
इसीलिये आंसुओं से साथी !
मैं हूँ उपवन को सींच रहा।
जो गीत किसी दिन गाये थे
वे इस वसंत में हुये फूल
हंसकर,चुनकर इनको ले लो
जो निःश्वासों में रहे झूल।
तब जो पीड़ थी भार
प्यार वह हुई कि
दम ही टूट गया. . . .
रहने की साथी चाह नहीं
जीने की कोई राह नहीं।
मै। दूर इसी से रहता हूँ
मत मुंह से निकले आह कहीं।
जब तक जीना तब तक सीना
इन फटे चीथड़ों में रहना।
जो सुनकर केवल हंसते हैं
अपनी उनसे कुछ क्यों कहना
साथी ! दुःख-सुख की आह
आंच पर चढ़ा कि
घट ही फूट गया।
मेरी वीणा का तार,
तार पर चढ़ा
उसी दम टूट गया. . .
सम्मान बड़ा कवि ने पाया
स्वागत में जन सागर उमड़ा
जब गीत उठे
सब झूम उठे।
फिर नयनों में सावन उमड़ा।
वह अमल कमल कोमल आनन
थी जो कि स्वतः कुसुमित कानन
पहिनाने आई, विमल माल
तज सौध सदन, निज सिंहासन
वह हार
प्रीति उपहार
कंठ पर पड़ा
उसी क्षण टूट गया।
मेरी वीणा का तार
तार पर चढ़ा
उसी दम टूट गया. . . .

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