अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

प्राणदीप

दीप यह जले
प्राण यह जले।
स्नेह-योग से जले प्राणवर्तिका
वक्ष के तले तले, यह दिया जले।
मैंने स्लेट पर जो नया
गीत लिख लिया
और कुछ कहूं इसे या घृणा कहूं।
कुछ समझ सका नहीं आह क्या किया ?
हंस के पढ़ा, आह की औ मिटा दिया।
क्यों शिकायतें करूँ
जी भले जले
प्राण यह जले. . . .
पास थे तो क्या हुआ ?
पा नहीं सका
साध थी छिपा के मुंह, जिस दुकूल में
रो लिया करूँ , उसे छू नहीं सका।
ओंठ से लगे रहे, पी नहीं सका।
स्वप्न हो गया समाप्त
और तुम चले,
प्राण ! तुम चले, यह दिया जले।
चैन ली, हृदय लिया,
क्या बचा कहो ?
गहन तम बढ़ा सखे ! ईष्ट दूर है।
मैं जलूंजला करूँ , तुम सुखी रहो
लो इसे रखो संभाल, वसन के तले
वक्ष के तले तले, यह दिया जले
प्राण यह जले, दीप यह जले. . . .

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