अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

वह देगा

संदेहों में प्राण उलझ कर
कितना दुख पाता है।
समझाता हूँ , किन्तु घूम कर
वहीं वहीं जाता है।
ये अभाव, दारिद्रय दैन्य
दैहिक दुख-सुख सब भ्रम हैं।
जो पाया गिन उन्हें अरे।
क्या तुच्छ और क्या कम है ?
छोटा पात्र साथ लाया
जो कम में भर जाता है।
और मांग मत, कहॉं धरेगा
व्यर्थ छलक जाता है।
यह भी उसने छीन लिया तो
दे-या-मत दे, चुप रह।
अन्य कौन, क्या ले सकता है।
जिस-तिस से दुख मत कह।
अभिनय सब से करा रहा जो
साज-स्वांग सब देगा।

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